बलरामपुर। एक बार दुआ, माथे में चार बार फूंक, और सारी बीमारी दूर। ऐसे जुमले अब छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले में आम सुनाई देने लगे हैं। जहां स्वास्थ्य विभाग की कार्रवाई कुछ दिन दिखी, वहीं अब उसकी रफ्तार थम सी गई है। नतीजा यह हुआ कि झोलाछाप डॉक्टरों का मनोबल फिर बढ़ गया है। इनका झांसा और अंधविश्वास आज भी ग्रामीण इलाकों में जानलेवा साबित हो रहा है। हालात इतने भयावह हैं कि बीते एक वर्ष में तीन लोगों की जान ऐसे ही फर्जी डॉक्टरों की लापरवाही से चली गई। जिनमें एक विशेष पिछड़ी जनजाति कोड़ाकू के बुजुर्ग की मौत भी शामिल है।
जब इंजेक्शन से ज्यादा झाड़-फूंक पर भरोसा
बलरामपुर जिले में कई ऐसे “डॉक्टर” सक्रिय हैं जो बीमारी का इलाज दवा से नहीं, बल्कि झाड़-फूंक और दुआओं से करते हैं। ये लोग भोले-भाले ग्रामीणों को ऊपरी हवा और जादू-टोना का भय दिखाकर पैसे ऐंठते हैं। किसी को माथे पर फूंक मारते हैं, किसी को पानी पढ़कर पिलाते हैं और इसी बहाने हजारों रुपए वसूल लेते हैं। गरीब और अशिक्षित वर्ग इन पर विश्वास कर अपनी जमा-पूंजी गंवा बैठते हैं, जबकि बीमारी गंभीर होकर जान तक ले लेती है।
डिग्री एक, इलाज दूसरा…गैरकानूनी प्रैक्टिस का बोलबाला
जिले में कई तथाकथित डॉक्टर ऐसे हैं जिनके पास होम्योपैथी या आयुर्वेद की डिग्री है, मगर इलाज करते हैं एलोपैथी से। यह न केवल अवैध है बल्कि जानलेवा भी साबित हो रहा है। प्रिस्क्रिप्शन पर डॉक्टर का नाम या डिग्री नहीं होती, ताकि किसी कार्रवाई की नौबत आए तो वे बच निकलें। सवाल यह है कि स्वास्थ्य विभाग की निगरानी के बावजूद ये ‘सफेद कोट वाले अपराधी’ खुलेआम कैसे अपने क्लिनिक चला रहे हैं?
एक वर्ष में तीन केस, तीन जानें… और अभी भी खामोश व्यवस्था
केस 1: बलरामपुर के शंभू मेडिकल स्टोर में 8 वर्षीय मासूम के घाव का इलाज करते हुए संचालक ने खुद इंजेक्शन लगा दिया। इंजेक्शन लगते ही बच्चे की हालत बिगड़ी और बाद में अंबिकापुर मेडिकल कॉलेज में उसकी मौत हो गई।
केस 2: रामचंद्रपुर थाना क्षेत्र के गाजर गांव में कोड़ाकू जनजाति के 70 वर्षीय बुजुर्ग सोहर की तबीयत खराब हुई। झोलाछाप डॉक्टर इलियास अंसारी ने इलाज किया और परिजनों को अस्पताल ले जाने से रोका। गलत इलाज के चलते वृद्ध की मौत हो गई। पुलिस ने मर्ग कायम किया है, पर एफएसएसएल रिपोर्ट का इंतजार जारी है।
केस 3: रघुनाथनगर में एक महिला पाइल्स की दवा लेने गई, लेकिन मेडिकल संचालक ने खुद ‘ऑपरेशन’ कर दिया। वो भी बिना एनेस्थीसिया और बिना नर्स के। महिला दर्द से तड़पती रही और आखिरकार अंबिकापुर मेडिकल कॉलेज में दम तोड़ दिया।
इधर, इस मामले को लेकर बलरामपुर जिले के सीएमएचओ डॉक्टर बसंत सिंह से फोन पर बात की गई। उन्होंने बताया कि, कलेक्टर के द्वारा हर अनुविभाग में कार्रवाई करने के लिए निर्देश दिया गया है। जल्द अन्य अनुविभाग में भी कार्रवाई की जाएगी।
जागरूकता ही सबसे बड़ा उपचार
बलरामपुर जैसे ग्रामीण जिलों में झोलाछाप डॉक्टरों की सक्रियता इस बात का संकेत है कि आज भी लोगों में सही इलाज को लेकर जागरूकता की कमी है। किसी भी बीमारी में झाड़-फूंक या अप्रमाणित इलाज पर भरोसा करना जानलेवा साबित हो सकता है। अब जरूरत इस बात की है कि लोग शिक्षा और जागरूकता के माध्यम से चिकित्सा की सही दिशा पहचानें। असली बदलाव तब आएगा, जब हर व्यक्ति विज्ञान और प्रमाणित चिकित्सा पर भरोसा करेगा। फिलहाल जिले के कलेक्टर ने इस मामले में अधिकारियों को जांच कर कार्रवाई के निर्देश दिए हैं, लेकिन विभागीय सुस्ती के कारण झोलाछाप डॉक्टरों का मनोबल धीरे-धीरे फिर बढ़ने लगा है।