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उच्च उपज और रोग प्रतिरोधक किस्मों से पाएं अधिक मुनाफा

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Published on: 14-Oct-2025

Updated on: 14-Oct-2025

विषय सूची

जानें — कौन-सी गन्ने की किस्में देंगी बेहतरीन पैदावार, रोगों से सुरक्षा और अधिक शर्करा प्रतिशत

भारत में गन्ने की खेती सदियों से किसानों की आय का प्रमुख स्रोत रही है। यह एक महत्वपूर्ण नकदी फसल (Cash Crop) है, जिसका उपयोग न केवल चीनी उद्योग में होता है, बल्कि गुड़, शीरा (molasses), इथेनॉल और पशु चारे जैसी कई उप-उत्पादों के निर्माण में भी किया जाता है। देश में उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, पंजाब, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्य गन्ने के प्रमुख उत्पादक हैं। यदि किसान समय पर बुआई, उचित किस्म का चयन, संतुलित उर्वरक प्रबंधन और रोग नियंत्रण तकनीक अपनाएं, तो शरदकालीन गन्ने से उन्हें प्रति हेक्टेयर हजार क्विंटल से भी अधिक उत्पादन प्राप्त हो सकता है।

शरदकालीन गन्ने की खेती का महत्व

शरदकालीन गन्ना सामान्यतः अक्टूबर से नवंबर के बीच बोया जाता है। इस समय तापमान, नमी और मिट्टी की स्थिति गन्ने की जड़ों के विकास के लिए अत्यंत अनुकूल रहती है। इस मौसम में बोया गया गन्ना मजबूत पौध तैयार करता है, जिसमें शर्करा प्रतिशत (Sugar Recovery) अधिक होता है। इसके अलावा, यह किस्में गर्मी और सूखे दोनों परिस्थितियों में बेहतर प्रदर्शन करती हैं।

उपयुक्त गन्ना बीज का चयन कैसे करें

बेहतर फसल के लिए बीज चयन सबसे महत्वपूर्ण चरण है।

  •  बीज का उम्र: 9–10 महीने पुराना, पूर्ण परिपक्व और मोटा गन्ना चुनें।
  •  बीज की स्थिति: गन्ने में लाल सड़न, ऊखमुड़िया या दीमक का असर बिल्कुल नहीं होना चाहिए।
  •  आंख (बड): जीवित और स्वस्थ होनी चाहिए।
  •  बीज का स्रोत: अपने खेत या कृषि विभाग से प्रमाणित बीज ही लें, ताकि उत्पादकता और रोग-प्रतिरोधकता सुनिश्चित हो।

शरदकालीन गन्ने की उन्नत किस्में

गन्ने की किस्में सामान्यतः जल्दी पकने वाली (Early Maturing) और मध्यम से देर पकने वाली (Mid to Late Maturing) दो श्रेणियों में आती हैं। किसानों को अपनी क्षेत्रीय जलवायु, मिट्टी और चीनी मिलों के Crushing Schedule के अनुसार किस्म का चयन करना चाहिए।

जल्दी पकने वाली किस्में (Early Maturing Varieties)

ये किस्में 10–11 महीनों में तैयार हो जाती हैं और शुरुआती पेराई सीजन के लिए उपयोगी हैं:

  • CoLk 14201 – लाल सड़न और ऊखमुड़िया रोग से प्रतिरोधी, उपज 850–950 क्विंटल/हेक्टेयर तक।
  • Co 16034 – 18–19% शर्करा के साथ सूखे में भी बेहतरीन प्रदर्शन। उत्पादन लगभग 900 क्विंटल/हेक्टेयर।
  • Co 17018 – पीलापन व कीट-प्रतिरोधक, उच्च रस गुणवत्ता, उपज 950 क्विंटल/हेक्टेयर।
  • Co 15023 – मोटा डंठल, तेज वृद्धि, औसत उत्पादन 880 क्विंटल/हेक्टेयर।

मध्यम से देर पकने वाली किस्में (Mid to Late Maturing Varieties)

इन किस्मों में शर्करा की मात्रा अधिक होती है और खेत में देर तक रहने पर भी यह नहीं गिरतीं।

  •  CoS 767 – रेड रॉट व स्मट रोग से सुरक्षा, औसत उपज 950–1000 क्विंटल/हेक्टेयर।
  •  CoS 8432 – सूखे में सहनशील, रस में 19% चीनी, उत्पादन लगभग 1000 क्विंटल/हेक्टेयर।
  •  CoS 88216 – मोटा डंठल, अधिक रस और रोग प्रतिरोधकता के साथ 1050 क्विंटल/हेक्टेयर तक उत्पादन।
  •  CoS 97264 – सफेद सड़न और दीमक से बचाव, उपज 950 क्विंटल/हेक्टेयर।
  •  CoS 96275 – उच्च चीनी प्रतिशत और रोगों से मजबूत रक्षा, उत्पादन 900–1000 क्विंटल/हेक्टेयर।
  •  Pant 84212 – उत्तर भारत की लोकप्रिय किस्म, ठंड सहनशीलता और 18.5% चीनी के साथ 1050 क्विंटल/हेक्टेयर तक उपज।

गन्ने की बुआई का वैज्ञानिक तरीका

शरदकालीन गन्ने की बुआई अक्टूबर के पहले पखवाड़े में करना सर्वोत्तम माना जाता है। पंक्ति दूरी: साधारण बुआई में 75 सेमी, मिश्रित फसल (जैसे आलू, चना, सरसों) के लिए 90 सेमी।

बीज की मात्रा:

  • एक आंख वाले टुकड़े – 10 क्विंटल प्रति एकड़
  • दो आंख वाले टुकड़े – 20 क्विंटल प्रति एकड़

बीज का उपचार कैसे करें

रासायनिक उपचार:

205 ग्राम एरीटॉन या 500 ग्राम एगलॉल को 100 लीटर पानी में मिलाकर 25 क्विंटल बीज डुबोएं।

जैविक उपचार:

1 लीटर एजोटोबैक्टर + 1 लीटर पी.एस.बी. को 100 लीटर पानी में मिलाकर 30 मिनट तक बीज डुबोकर सुखाएं और फिर बुआई करें। इस प्रक्रिया से रोगजनक फफूंद और कीटों का खतरा काफी हद तक कम होता है और अंकुरण दर बढ़ती है।

खाद एवं उर्वरक प्रबंधन

यदि मिट्टी परीक्षण नहीं हुआ है, तो औसतन निम्न मात्रा प्रति हेक्टेयर डालना लाभकारी रहेगा:

  • नाइट्रोजन (N): 60–75 कि.ग्रा.
  • फॉस्फोरस (P): 60–80 कि.ग्रा.
  • पोटाश (K): 20–40 कि.ग्रा.
  • जिंक सल्फेट: 25 कि.ग्रा.

इसके साथ ही खेत तैयार करते समय 10 टन सड़ी हुई गोबर की खाद या प्रेसमड डालना न भूलें। यह मिट्टी की संरचना सुधारती है, सूक्ष्मजीवों की सक्रियता बढ़ाती है और गन्ने की जड़ों को पोषण प्रदान करती है।

कीट एवं रोग प्रबंधन

गन्ने की फसल को दीमक, शूट बोरर, टॉप बोरर, और रेड रॉट जैसी बीमारियों से बचाना आवश्यक है।

दीमक व अंकुर बेधक के लिए: क्लोरोपाइरीफॉस (20 ईसी) – 6.25 लीटर/हेक्टेयर + क्लोरेन्ट्रेनिलिप्रोल (18.5 एससी) – 500–600 मिली/हेक्टेयर को 1500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़कें। खेत की नियमित निगरानी करें और प्रारंभिक अवस्था में ही निराई-गुड़ाई कर खरपतवार नियंत्रण सुनिश्चित करें।

उन्नत बीजों से अधिक उत्पादन और गुणवत्ता

यदि किसान उन्नत किस्मों का चयन, समय पर बीज उपचार, उचित सिंचाई और पोषण प्रबंधन अपनाते हैं, तो उन्हें 1000–1100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज प्राप्त हो सकती है। इन किस्मों की खासियत यह है कि इनसे रोगों का खतरा कम रहता है और रस में शर्करा प्रतिशत अधिक होता है, जिससे चीनी मिलों में Recovery Rate भी बेहतर रहती है। शरदकालीन गन्ने की खेती किसानों के लिए एक स्थायी और लाभकारी विकल्प है। सही तकनीक और रोगप्रतिरोधी किस्मों के उपयोग से किसान न केवल अपनी आय बढ़ा सकते हैं, बल्कि मिट्टी की सेहत और फसल की गुणवत्ता भी बनाए रख सकते हैं।

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By uttu

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